Monday, October 19, 2009

मेरी पगली: भाग 35 का 4

ताज़ा ख़बर ये है की मैं भी अब उससे तू- तड़ाक से ही बातें करने लगा हूँ। हुआ यों था:

मैं: त-तुम्हें मेरी उ- उम्र कितनी लगती है? (मैं तो अब भी डर ही रहा था)
"ये ऐसी कौन सी ज़रूरी बात है जो मैं जानूं?" उसने मेरी ओर आँखें तरेर कर कहा।
"मैंने देखा है, तुम '76 की हो। मैं तुमसे एक साल बड़ा हूँ। और इस नाते तुम्हें मुझसे इज्ज़त से पेश आना होगा।", काश, मैं ऐसा धमाका कर पता।
"म- मैं क्या कह रहा था... मैं सोच रहा था... शायद तुम '76 की हो... ऐतराज़ हो तो नहीं भी हो सकती हो... लेकिन अगर हो... तो मैं तुमसे एक साल बड़ा हो सकता हूँ...."
"अच्छा! तो तू भी मुझे तू बुला सकता है, इसमें ऐसी कौन सी बात है!"

और इस तरह मुझे उसे तू कहने का लाइसेंस मिल गया। अजीब सा नहीं है क्या? मिले हुए इससे दो दिन और तीन रातें हुयी हैं, और जिनमें दो रातें हमने होटल में बितायी हैं, एक साथ, एक ही कमरे में!

वो किसी यूनिवर्सिटी में पढ़ती है, जहाँ उसका बुधवार "ऑफ़" होता है। मेरी छुट्टी गुरू को होती है।

अभी इस बुध को उसका जी नहीं लग रहा था, कुछ करने को नहीं था, तो मुझे फ़ोन लगा डाला। मैं क्लास में बैठा उकता रहा था। मैंने उसको समझाने की कोशिश की कि एक खड़ूस प्रोफेसर कि क्लास जो दोपहर बर्बाद कर देती है, उसमें मुझे अचानक से बड़ा मज़ा जैसा कुछ आने लगा है। लेकिन मैं उसके रहते मज़ा कैसे लूँ... उसने धमकी दे दी कि वो मेरे कॉलेज आ रही है, और मैं उसको रोक नहीं सका।
लंच के बाद 2 30 की झपकी आई ही थी की धड़ाक से दरवाज़ा खुला। अक्सर जब लड़के लेट से आते थे तो पीछे के दरवाज़े से चुपके से दाखिल हो जाते थे, ये कौन हिम्मतवाला हो आया था जो सामने के दरवाज़े से ही... सबने उधर देखा... हंटर वाली ही थी- "ये कैसा कॉलेज है! क्लास रूम मिलते नहीं कभी!" इस विवेचना के साथ वो घुसी। मेरे होश ही उड़ गए। मैं सोने और इधर उधर लोटने की एक्टिंग करने लगा, आँखें मीचे छोटे बच्चे जैसा, जिसको दुनिया नहीं देख पाती है! लेकिन उसके चाप बता रहे थे की वो मुझे देख भी रही थी, और मेरे पास भी आ रही थी। उसको कैसे पता चला की वो आँखें मीचे मैं ही हूँ? अचम्भा है न! अगर मैं उसको नहीं देख पा रहा तो वो भी मुझे नहीं देख सकती होगी, ऐसी उम्मीद फ़ेल होती दिख रही थी.....

मेरा सारा जेब खर्च खाने और दोस्तों के साथ पीने की भेंट होता। इसीलिए मेरे पास एक ही शर्ट और पैंट थी, और जब भी मैं मिलता था, वही पहने होता था। उसी से पहचाना होगा। भक! मेरे दोस्त... दारू... और ये दुनिया..... कहाँ भागूं जहाँ मुझे इस हाल में किसी ने न देखा हो... उसको मेरे पास ही बैठना था।

नया सेमेस्टर था इसीलिए प्रोफ़ेसर सब को नहीं जानता था। वो सोच रहा होगा की कोई क्लास की ही लड़की होगी....
....और यहाँ बाकी लोगों में करंट सा दौड़ रहा था! सारे दाएं बाएँ की बातें ही कर रहे थे:
"नई चिड़िया है क्या?"
"लगती तो है!"
"खतरनाक खूबसूरती है!"
"अपने कॉलेज में ऐसी सुंदर लड़कियां कब से आने लगीं?"
"हा... इसीलिए ताकि मैं इस क्लास में आ सकूँ!"
मेरे पीछे वाले ने पेन्सिल घोंप के फुसफुसाया "अबे, तेरे बगल वाली तो कुछ धमाका है! क्लास के बाद इसका पता ठिकाना पता करें क्या?"
"गधे...." मैंने सोचा। अभी जब ब्रेक में ये मुझे घसीटती हुयी ले जायेगी, तो उसके ब्वायफ्रेंड के नाम से फेमस होते मुझे दो सेकंड भी नहीं लगेंगे। काश ये बीस मिनट बीत जायें और ब्रेक में मैं चुपके से खिसक सकूँ! और ये मेरे क्लास वाले इस बीस मिनट को और लंबा बना रहे थे....

ब्रेक हुआ। मैं झटपट उठ के भागने लगा। उसने मेरा पीछा किया, और बोली- कहीं किनारे चल के बातें करते हैं!
क्या मुसीबत है!

मैं वैसे भी कोई देश का होनहार नौनिहाल नहीं हूँ। और ये खड़ूस मास्टर सीधे डी और ऍफ़ देने के लिए मशहूर था।

इमानदारी से उसको समझाने की पूरी कोशिश की कि मैं ये क्लास को अलविदा नहीं मार सकता, चाहो तो मार ही डालो! उसने भी कहा " ठीक है!" और बैठ गई।

दस मिनट का ब्रेक ख़त्म हो चुका था... वो क्लास में नहीं आई थी। चली गई या बाहर मेरा वेट कर रही है...?
सोच की धारा प्रोफ़ेसर ने तोड़ी- " ग्युनवू, तुम आज जा सकते हो, तुम्हारा अटेंडेंस मैं लगा दूँगा।"
"ल-लेकिन क्यों?"
"वो तुम्हारी गर्लफ्रेंड थी न?"
पूरी क्लास में सुई पटक सन्नाटा। वो सबके आंखों की भौचक जलन मुझे एक क्षणिक "प्राइड" दे रही थी। लेकिन इसने मास्टर को ऐसा कहा क्या होगा, जो इसने मुझे छोड़ दिया? खैर, सामान ले कर बाहर आया तो देखा, वो इंतज़ार कर रही थी।

"तूने उसको ऐसा कहा क्या जो वो मान गया?"
उसने खुलासा किया, "... ये की मैं अबोर्शन कराने जा रही हूँ, और बच्चे का बाप तू है!"
पैरों के नीचे से ज़मीन की चादर किसी ने खींच दी! कोई और ये बताता, तो शायद मैं न मानता.... इसकी हिम्मत का फौलाद एकदम मानना ही होगा।
मुझे कहीं का न छोड़ा इसने! मेरी कैम्पस लाइफ की तो मौत ही हो गई..... अब मैं उस क्लास में ऍफ़ लेना चाहूँगा, और जाने की कोई इच्छा नहीं बची है। सुनने में आया की जब लड़कों ने मुझे छोड़े जाने पर नाक भौं सिकोड़े तो प्रोफ़ेसर ने उनको उस वजह की मुनादी पीट दी। सोने पे सुहागा।
मेरी सहपाठी लड़कियां अब मुझसे कतराने लगीं, वो युन्गमी, जो मुझे नक्शे बनाने में हमेशा मदद करती थी, वो भी दूर भागने लगी थी, मुझे कामांध कमीना समझती थी। हालात ये थे की जिस भी कक्षा में मैं जाता, लोगों की कहानियाँ और दंत कथाओं का विलेन मैं होता।
मिलिट्री में दो साल बिताने के बाद कॉलेज में दाखिला लिए दो महीने ही बीते थे की मेरा हुक्का पानी बंद सा हो गया था। और ये छुआछूत तो बस तकलीफ मात्र थी, क्योंकि आगे जो हुआ वो दर्दनाक था।

ओह हाँ, और ये बताना श्रेयस्कर होगा की उस कोर्स में मुझे बी मिला। लोग अब और भी जलने लगे थे। मेरे दोस्त ने बताया था की उस बार 120 में सिर्फ़ एक को ही ऐ मिला था। उसके बाद "मेरी सिचुएशन को देखते हुए" पूज्य गुरू जी ने मुझे बी देने का निश्चय किया था, जो पहले कभी ना हुआ था, न आगे ही कोई और कर सकने का हौंसला रखेगा।

मैं कॉलेज का "लेजेंड" बन चुका था....

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