Wednesday, July 21, 2010

गूंगा कुत्ता

जब मैं अपने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बम्बई वाले दोस्त के घर पहुंचा, तो देखा, उसका कुत्ता नहीं दिख पड़ रहा है। मैंने उससे पूछा- दोस्त अपना टॉमी नहीं दिख रहा?
उसने मुस्कुराते हुए कहा- मित्र, मैंने उसे अपने गोरखपुर वाले चाचा को वापस दे दिया...
उत्कंठा से ग्रसित हो मैंने भी वजह पूछ ली। फिर उसने कहानी बताई-

उसने कहा- तुम्हें तो पता ही होगा कि मेरे चाचा जी ने वो कुत्ता हमें तोहफे में दिया था। लेकिन वो बेचारा अनबोलता था।
मैंने भी झूठा अफ़सोस ज़ाहिर किया- बेचारा!
उसने अफ़सोस को स्वीकार कर के आगे कहा- वो अपनी दुम भी कम ही हिलाता था। हमें लगता था शायद जर्मन शेफर्ड ऐसे ही होते हों, तो हमने भी उसे अपना रखा था।
ऐसी ही एक रात, हमें यह लगा कि कोई कुत्ता अपने घर में चीख रहा है। शायद कोई चोर- चमार घुसा आया हो, ऐसा विचार कर के हम लोग लट्ठ और बत्ती ले कर बाहर निकले। देखा, टॉमी किसी जंगली कुत्ते की गर्दन में अपने दांत गड़ाए है, और कुत्ता बिलख रहा है। जैसे तैसे कुत्ते को छुड़वा के भगाया।
टॉर्च की रोशनी में अभी भी टॉमी की हरी आँखें अंगारों जैसी चमक रही थीं। हमें तब यह विचार चमका कि कहीं यह भेड़िया तो नहीं!
आगे मेरे दोस्त ने कहा- अपने चाचा से पूछने पर उन्होंने - शिकार के दौरान यह मिला था जंगल में। हम तो वहीँ से पकड़ के लाये थे। बस, हमने उसे तुरंत ही वापस उन्हें सुपुर्द कर दिया।
मेरा दोस्त बोला- "वही मैं कहूँ कि वो गाजर क्यों नहीं खाता था। उसके लिए ख़ास तौर पर मांस पकाना पड़ता था, जबकि हम सभी शाकाहारी हैं।"

शिक्षा: ठगे जाना भी हमारी ही ज़िम्मेदारी है