Tuesday, October 6, 2009

मेरी पगली: भाग 35 का 2

दोस्त और शराब, शाम के सबसे अच्छे साथी हैं... रात के दस बजे ये याद आया की अपनी बुप्युंग वाली मौसी से मिलना है (मौसी लोगों से मिलने में मेरी खासी अरुचि है).... जाना मजबूरी थी, इसीलिए मैंने शिनरिम से सानरिम तक की मेट्रो पकड़ ली और वहाँ से शिन्दोरिम... शिन्दोरिम वाली ट्रेन थोड़ी लेट थी, और उस खाली समय में मैंने देखा- मेरे बगल में एक धुत लड़की पीले टी शर्ट और जींस में खड़ी थी।
अगर बला की नहीं , फ़िर भी मेरे स्टैण्डर्ड से आकर्षक ही थी... वयस कुछ 24- 25 की रही होगी...

मदहोशी में उसकी आँखें कभी अधमुंदी, तो कभी बंद सी होती थीं।
कुछ बुदबुदा रही थी.....
[बुदबुदाने की आवाज़]

अगर ये शराबी न होती तो मेरे सांचे में फिट होती....

खैर, ट्रेन आदतन लेट आई.... और लेट होने के कारण खाली ही थी। डब्बे में मैं और वो, दोनों दो उल्टे दरवाजों पे टिके हुए थे।

इस पूरी ट्रेन में मैंने नज़र दौड़ाई, कोई सो रहा था, कोई स्वेटर बुन रही थी, कोई अखबार पढ़ रहा था.... और मैं? मुझे तो वो क्यूट सी लग रही थी, तो मैं उसे ही देख रहा था। उसका नशे में होना ही मेरी नज़र में उसको खूबसूरत बना रहा था। लोग बाग़ अकसर पोल पर पीठ टिका कर टिकते हैं, ये पोल के सहारे डोल रही थी। बूढ़े टकलू अंकल बाजू में बैठे अखबार चाट रहे थे.... और मैं उसे निहार रहा था....

सब कुछ शांत सा चल रहा था की अचानक ही उसे उबकाई आई और- ओक्क! हड़-हड़-हड़ाक!

अभी तक तो मैं ही देख रहा था, इस आवाज़ के बाद पूरी बोगी ही उसको देखने लगी...

जो सो रहा था, वो आँखें मलता हुआ सा उठ बैठा, स्वेटर वाली आंटी उधर ही देखने लगीं, और सबकी हँसी पिचकारी सी छूट पड़ी। टकले अंकल के सर पे नूडल्स बाल जैसे पड़े हुए थे, और सरकते हुए उनकी तोंद और कन्धों पे गिर रहे थे... दस सेकंड तक तो वो हतप्रभ पड़े रहे... फ़िर साफ़ करने को हुए की दूसरी और तीसरी खेप भी आ गिरी। नूडल्स बिना शोरबे के अच्छे नहीं लगते, तो उस नशेबाज़ ने उनको वो भी "सर्व" कर दिया...

नूडल्स लाल हैं... ह्म्म्म्म... ज़रूर घोंघे वाली नूडल्स खायी है.....

बेचारे अंकल अखबार से ख़ुद की सफाई कर रहे थे.... उनके कपड़े और दिन, दोनों ही बरबाद हो गए थे...
... और मेरी रात बरबाद होने वाली थी।

उल्टी कर के वो जब संतुष्ट हो चुकी तो अधमुंदी आंखों से मेरी ओर देखा, और "डार्लिंग" कह कर बेहोश हो गिरी। मैं हड़बड़ा गया, "कौन- मैं? आप हैं कौ...", लेकिन बेहोश होने वाली तो कब की उलट चुकी थी।

अब सारा डब्बा मेरी ओर देख रहा था.... जिसकी नींद खुल चुक थी, उसकी समझ में ये आ रहा था की इस लड़की का ब्वायफ्रेंड मैं ही हूँ। स्वेटर वाली आंटी मुझे घूर रही थीं। दूर खड़ी एक लड़की आँखें तरेर कर मुझे ही देख रही थी। रात के वक़्त सनग्लास पहने एक लड़की हंस रही थी.... मैं डरा हुआ सब में एक चेहरा खोज रहा था जो ये कहे मैं उसका डार्लिंग नहीं था...

... और अंकल जी चिल्ला रहे थे "तुम! इधर आओ, और साफ़ करो! ये क्या किया?"

मैं कहाँ फंस गया! मेरा दिमाग सुन्न हो रहा था, और डर से मेरी घिग्घी बंद थी...

"म-मैंने नहीं किया..."
"तुमने ही किया है! अपनी गर्लफ्रेंड का ख्याल नहीं रख सकते! साफ़ करते हो या नहीं...." अंकल जी भौके।
डर के मारे मेरे मुंह से निकल गया, "जी सर, सॉरी",
... और मैंने मुझे उस डब्बे के समाज के आगे उस बेहोश लड़की का ब्वायफ्रेंड करार दिया....

डर से थरथराता मैं बेचारा क्या करता, नैपकिन रूमाल मेरे पास होते भी नहीं थे। मजबूरन, अपनी शर्ट उतारी, जो मेरी बहन ने मुझे बर्थडे गिफ्ट दी थी, और उससे उनकी खोपड़ी चमकाने लगा....
"जल्दी करो!"
"ज-जी सर!" रोनी हालत थी.... हाथ जल्दी जल्दी चल रहे थे। जिल्लत और डर, सब एक साथ...

जब चीज़ें सामान्य होने लगीं तो मुझे अपनी नई "डार्लिंग" का ख्याल आया, जो चारों खाने चित पड़ी थी.....

बुप्युंग अगला स्टेशन था। मैंने उसे उठा कर बाहर निकाला (दरअसल, पैरों से घसीट कर निकाला), और उसे पास की एक कुर्सी पर बिठा दिया। लेकिन किसी लड़की को बीच रास्ते में छोड़ कर नहीं जा सकते... उसे जगाने की कोशिश की, लेकिन वो उठी नहीं।
मेरे पास कोई चारा नहीं था। कोई होटल करना होगा। वो हलकी फुलकी ही थी, लेकिन उसे लाद कर पास के होटल तक जाते जाते मैं पसीने में नहा गया....
... मैं भी कहाँ जंजाल में फंस गया था, सब चांस की बात है.... और आप भी शायद यही नहीं करते?... मैं बुरा इंसान नहीं हूँ.... मैं किसी बेहोश और अनजान लड़की को न तो छोड़ सकता हूँ, और न पीठ पर लाद कर घूम ही सकता हूँ....

"तुम्हारी गर्लफ्रेंड तो गई!", रिसेप्शनिस्ट बोली।
"हाँ, कोई कमरा खाली है? अ.. आपके पास होश की कोई दवा है?"
उसे लाद कर कमरे तक गया, और बिस्तर पर लिटा दिया।
उसने उलटी बड़ी सफाई से की थी, ख़ुद के कपड़ों को गन्दा किए बगैर, इसलिए उसके कपड़े बदलने की ज़रूरत नहीं पड़ी।

अब जबकि होटल का रूम मिल ही गया था, तो सोचा की नहा ही लूँ...
मन भर कर नहाया, और जब बाहर निकला तो देखा की वो चैन से सो रही थी। मैंने एक चिट उसके पास छोड़ दी, "मैडम, आप मुझे कॉल कर सकती हैं", नीचे अपना मोबाईल नम्बर मैंने छोड़ दिया, और वहां से चला गया...

आप सोचते होंगे की क्या उसने मुझे कॉल किया? वो बड़ी हिम्मती लड़की थी, मुझसे भी ज्यादा (और उसकी यादें मुझे आज भी काटती हैं)।
और हाँ, अगले दिन उसका फोन आया....

क्रमशः

4 comments:

  1. अच्छा लिखा है, बहुत हद तक रूसी कहानियों जैसा - जैसे टॉल्स्टाय आदि की कहानियाँ होती थीं। लिखो लिखो, मगर ३५ भाग से कम करो यार!

    और अगर रख रहे हो ३५ भाग, तो पहले ही बता दो कि ३५ क्यों हैं जिससे थोडी रुचि बनी रहे।

    बाकी ऐश करो!

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  2. 35 bhaag rakhne ki vajah...
    concluding part mera hoga. 2 - 34 lekhak ki rachna hai, aur uske write up ke liye loyalty rakhna chahta hoon.

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  3. Well Done Nimesh!!! Bahut hi ache se present kiye hai aap,really impressive, keep it up! Write more n more...!!!Bahut hi interesting hai hindi mein story padhana...Wo bhi Sassy gal ka hindi...:)Good Job!!!

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  4. धन्यवाद अंजू,कोशिश करूँगा की इस कहानी के सारे भाग लिख सकूँ

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