Tuesday, September 8, 2015

भेद

चंपकवन के बीचोंबीच एक सरिता बहती थी। उस सरिता के एक तरफ के जंगल पर गीदड़ों का राज्य था।
गीदड़ों के रोज रात को हू हू करने पर पूरे जंगल और उसके आस पास के इलाकों में उनकी ख्याति संगीतज्ञ और कला प्रेमियों के रूप में भी हो चली थी। आस पड़ोस के जंतु यह मानने भी लगे थे कि यदि कहीं स्वर्ग है तो यहीं इसी गीदड़ों के साम्राज्य में।

उसी सरिता के ऊपर की तरफ , लेकिन दूसरे तट से परे हट कर शेर राज करते थे। कई बार वहां से हलकी दहाड़ की ध्वनि आती , लेकिन उससे जंतु थोड़े भयभीत और थोड़े अनमने ही रहते।
एक दिन एक शेरनी ने एक शावक को जन्म दिया। बच्चा जब कुछ दिनों में चलने योग्य हो गया तो पानी पीने सरिता के पास पहुंचा। लेकिन पानी पीते हुए उसके पैर फिसल गए और वो सरिता में गिर पड़ा। वह छटपटाया कि तट पर आ सके , लेकिन बहता हुआ दूसरी तरफ , सरिता के नीचे चला गया।
वहाँ उस पर एक गीदड़ की दृष्टि पड़ी और वो उसे दांत में दबा कर धीरे से उठा कर राज्य में लेता आया। बच्चे शेर ने देखा , दरबार में हू हू का गायन पूरे उल्लास से चल रहा था।
बच्चे ने पूछा- "चाचा जी, ये क्या हो रहा है?"
गीदड़ बोला -"यहाँ हम लोगों के हाथों आज एक मरा हुआ हाथी लगा है , उसी का जलसा है। "
गीदड़ आगे बोला - "तुम्हें यहाँ हम शिकार करना सिखाएंगे। तुम्हें करना ये है कि जैसे कोई जानवर देखो, उसके पीछे लग जाओ। अगर वो धीरे चलता हुआ लगा, तो शायद बीमार भी होगा।  अगर उसकी मृत्यु हो गयी, तो हमारी तरह गाने लगना। फिर हम सब जमा हो जायेंगे और उसको घसीट के यहाँ लेते आएंगे। "
"और अगर जानवर नहीं मरा तो ?" - बच्चा उत्सुक हो गया।
"तो फिर कोई दूसरा जानवर मारेंगे , लेकिन याद रखो, हर दिन एक जानवर का शिकार ज़रूरी है। "
"लेकिन ज़रूरी तो नहीं की हर रोज़ एक जानवर मरे ही। "
"लेकिन अगर रोज़ जानवर नहीं लाओगे तो गीदड़ राजा से डांट भी पड़ेगी और उनकी सभा में अपमानित भी होना पड़ेगा। एक बार उन्होंने ऐसे ही एक गीदड़ को शिकार में बार बार खाली लौटने पर राज्य से निष्कासित कर दिया था। ओह बेचारा कहाँ जाता इतनी समृद्ध जगह छोड़ कर।  आज भी बेचारे के लिए दया ही आती है। "

सोच कर बच्चे के माथे पर बल पड़ गए।  अच्छी मुश्किल थी, शिकार मरेगा ही, इसका क्या भरोसा।
अगले दिन से छोटे शेर ने अपना दिमाग चलना शुरू किया। एक हफ्ते के आराम के बाद उसे भी शिकार पर ले जाया गया। उसे उस दिन एक बकरी का छौना मर हुआ मिला।
उसने अपनी ओर से गाने का प्रयास किया, किन्तु उतना माधुर्य न ला सका जितना बाकी गीदड़ लाते थे।

खैर, गीदड़ सुन के आये, और शिकार उठा कर ले चले। बच्चा अपने पहले शिकार के लिए बधाई चाह रहा था।  झटके से उसकी सोच टूटी , देखा, गीदड़ों का राजा उसे डांट रहा था - "इतना छोटा शिकार? इससे क्या होगा? और तुम्हें गाना नहीं आता? अगली बार ध्यान रहे!"

बच्चे का डर सच जैसा हो रहा था।  यहाँ पर जल्दी ही कुछ और करना होगा , वरना दाल नहीं गलेगी।
उसे उस दिन एक जोड़ा खरगोश मरे हुए मिल गए, और उसने अपने साथी से कहा, गा के बताओ, मैं सीखूंगा।  उसके साथी ने गाया, और बाकी गीदड़ आये, और खरगोश उठा के ले गए। उस दिन के अंत में गीदड़ राजा ने साथी गीदड़ की पीठ थपथपाई - "तुम्हारे गाने का अंदाज़ निराला था , निस्संदेह, इस जानवर की खोज का सारा श्रेय तुम्हें ही जाता है ! हम सभी को तुमसे आशाएं हैं !"
शेर का बच्चा भौंचक सा रह गया। गाना इतना महत्त्वपूर्ण है, शिकार खोजने से भी ज्यादा, ये उसको पता ही नहीं था!उसने सोच लिया कि वो भी गायेगा और शिकार का श्रेय लेगा।
शिकार का स्वाद उसे अच्छा नहीं लग रहा था।  ठन्डे मांस में सुख नहीं मिल रहा था , लेकिन जब सारे ही उत्कंठित हैं, तो ज़रूर यही सही होगा।
शेर अब अकेला जाने लगा और उसने अलग अलग तरीके भी ईजाद करने शुरू कर दिए, मसलन, कभी घात लगा कर अपने पंजों और दांतों से जानवर घायल कर देना, और छोटे जानवर जैसे बकरी, सूअर के बच्चे, इत्यादि को मार कर ले आना।  सब सही, लेकिन दो दिक्कतें थीं,गीदड़ राजा से बार बार निराशा मिलती थी,एक तो जानवर छोटे थे, कभी मिले तो कभी नहीं मिले, और दूसरे कि गण बड़ा ही बेसुरा था।
गाने की कमज़ोरी के कारण शेर के साथ एक गीदड़ मित्र भी रख दिया गया। गीदड़ जाएगा, जब शेर शिकार करेगा।
शेर ने फिर एक शिकार किया , गीदड़ गाया और टोही दल आ कर शिकार ले गया। राजा गीदड़ ने मित्र गीदड़ की भूरी भूरी प्रशंसा की कि किस भाँती उसने अपनी कला से शिकार को अंजाम दिया।
शावक गीदड़ को फिर से डांट पड़ी क्योंकि एक सूअर बहुत बड़ा नहीं था, अतएव बहुत लोगों का पेट नहीं भरेगा।

कुछ महीने बीत चुके थे, और छोटा शावक थोड़ा बड़ा हो गया था। वह बड़ा ही उदास रहने लगा था।  उसे हमेशा डर रहता था कि आज शिकार कैसे मिलेगा। अगर मिला तो बड़ा जानवर कैसे मारें, और उसको शाबाशी कब मिलेगी , अपनी मेहनत का पुरस्कार कब मिलेगा। अभी कुछ दिनों पहले की बात थी, उसने एक भैंसे को एक ही वार में चित्त कर दिया था।  लेकिन गीदड़ राजा की शायद समझ नहीं आया की एक पंजे में चित्त कर देने में कौन सी बहादुरी है , अतः उन्होंने बिना जाने बड़ाई नहीं की।  कला प्रेमी होने के कारण उनके कान संगीत को भली प्रकार समझते थे और इसलिए बाकियों की तारीफें भी करते थे, भले ही उन्हें शिकार रोज़ मिले या नहीं। क्योंकि उन्हें गाने का लहज़ा पता था। शावक को इस बात का बेहद मलाल था कि  चाह के भी उसे गाना नहीं आ पा रहा था।
दूसरों की लार लगी हुयी जूठन खाने में सुख नहीं था, और अपमानित होने में तो बिलकुल भी नहीं। अगर रोज़ भोजन लाने पर ये हालत है, तो किसी दिन शिकार ना मिला तो क्या होगा, इसकी चिंता उसे खाए जा रही थी। जंगल छोड़ कर जाएँ भी तो कहाँ? यह जंगल काफी समृद्ध था, और आस पड़ोस के जीव भी वहां के निवासियों को बड़ी आदर मिश्रित भय की दृष्टि से देखते थे। वैसा सम्मान उसे किसी और जंगल में भला मिल सकता था ?
इसी उधेड़बुन में एक दिन वह चलता हुआ सरिता के ऊपरी हिस्से पर चला गया। उस दिन वहां एक बाघ पानी पीने आया हुआ था।
उसने देखा, एक शेर दूसरी तरफ खोया खोया चल रहा है तो उसने आवाज़ दी। छोटे शेर ने देखा, बाघ बोल रहा था।  उसे बड़ा अचरज हुआ कि उसकी बोली बहुत बेसुरी नहीं है, और भी जंतु हैं जो बराबर ही हैं !
बाघ ने उससे पूछा - "तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"
शेर बोला "बहता हुआ चला आया था। "
बाघ बोला -"अरे! तुम हमारे जंगल के हो, वहां गीदड़ों के बीच क्या कर रहे हो! इधर आओ!!"
"लेकिन वहां बड़ी समृद्धि है!"
"कैसी समृद्धि? तुम शेर हो, और यहीं शोभा देते हो। मरे हुए जानवर खा के रिरियाने में कौन सा सम्मान है? क्योंकि शेर उस तरफ आते नहीं, इसीलिए बाकी के जाहिल जानवरों को ये गीदड़ ही महान लगते हैं!"
"क्या, सच?"
"तो और क्या!"
"मैं वहाँ आ जाऊं?"
"तुम्हारी उचित जगह यही है "
शावक भी उस जीवन से उदास हो चुका  था , और वो उस दूसरे जंगल को देखने को भी उत्सुक था जहाँ बाकी सब भी उसी के जैसे थे। किंतु सरिता में तैरना अभी भी बालक को नहीं आता था। उसने तुरंत एक युक्ति सोची।वह थोड़ा और ऊपर चला गया और सरिता में कूद गया. इस बार, उसने हाथ पाँव चलाये और वेग के साथ बहता हुआ थोड़ा आगे जा कर दूसरे  तट  पर आ लगा।  इस भाँती नन्हे शेर ने सरिता वापस पार की और अपनी तरह के जंतुओं के बीच रहने लगा।
उसको यह सब जान कर ख़ुशी हुयी कि बाज़ जानवर यहाँ अपना शिकार खुद करते हैं, और रिरियाने के बजाये दहाड़ते हैं। उस जंगल में उसके अपने ईजाद किये हुए घात लगाने की विधि को सराहा गया।
उस शेर ने उस जंगल में अपने दिन बड़ी उमंग और इत्मीनान से गुज़ारे।

शिक्षा: १. गीदड़ों से गर्जन को सराहने की अपेक्षा मत करो।
२. अगर कड़ी मेहनत से भी परिणाम न आये तो नयी दिशा से मेहनत करो

No comments:

Post a Comment